कोरोना वायरस महामारी के दौर में फेफड़े को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। शरीर में फेफडा एक बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण अंग है। फेफड़ा ही नाक और सांस की नलिओं के साथ हमारे शरीर के अंदर शुद्ध अक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है और शरीर के अंदर से कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है।
एक तरह से यह शरीर में एयर फिल्टर का काम करता है। अगर इसमें कोई भी खराबी आती है तब कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौर में फेफड़े का ध्यान रखना बेहद जरूरी है क्योंकि कोरोना वायरस फेफड़े को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
फेफड़ा ही किसी भी प्रकार के प्रदूषण या संक्रमण की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला अंग है। मेडिकल साइंस ने आज भेल ही काफी तरक्की कर ली है और किडनी, लिवर, और हार्ट को अब ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। लेकिन आज भी लंग यानी कि फेफड़े को ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है। इसलिए भी हमें अपने फेफड़े का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
हमारे शरीर को जीवित और स्वस्थ रखने के लिए शरीर के प्रत्येक कोशिका को ऑक्सीजन मिलने जरूरी होता है और शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक ऑक्सीजन को पहुंचाने की जिम्मेदारी स्वसन तंत्र पर होती है और यह सांस नाक और फेफड़े के साथ मिलकर सांस लेने और सांस छोड़ने की प्रक्रिया द्वारा संचालित होता है।
सांस लेने के द्वारा नाक के जरिए हवा फेफड़ों तक पहुंचती है और इस प्रक्रिया के दौरान धूल के कण और एलर्जी वाले बैक्टीरिया के कुछ कण नाक के अंदर ही फिल्टर हो जाते हैं।
हालांकि ये हवा शुद्ध फेफड़े के अंदर ही होती है क्योंकि फेफड़े में अत्यंत छोटे-छोटे लाखों की संख्या में छेद होते हैं इन्हें मेडिकल साइंस की भाषा में एसिनस कहा जाता है। यही सांस को दोबारा से फिल्टर करते हैं।
इस तरह हमारे ब्लड को भी ऑक्सीजन मिलता है। यह हार्ट के जरिए शरीर के प्रत्येक हिस्से तक शुद्ध ऑक्सीजन ब्लड के जरिए सप्लाई हो जाती है।
इसके बाद जितनी बची हुई हवा होती है फेफडा उसे फिल्टर करके नुकसानदेह तत्व को सांस छोड़ने की प्रक्रिया के दौरान शरीर से बाहर निकाल देता है। अगर फेफड़ा सही ढंग से काम करता है तब शरीर में बैक्टीरिया और वायरस शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान नही पहुंचा पाते हैं।
ऐसे नुकशान पहुँचता है फेफड़े को –
वातावरण में जब बैक्टीरिया और वायरस फेफड़े को संक्रमित करते हैं तब फेफड़े में सूजन की समस्या भी आ जाती है, जिसे निमोनिया कहा जाता है। इसमें सांसे तेज चलती है या फिर धीरे चलती है, सीने से घबराहट की आवाज आती है, इसके अलावा बुखार, खांसी इसके प्रमुख लक्षण हैं।
छोटे बच्चे और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए यह समस्याएं इन लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है। इसके अलावा प्रदूषण से फेफड़ा सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।
जो लोग धूम्रपान करते हैं, उन लोगों के फेफड़े और सांस की नालियों को धूम्रपान से निकलने वाले केमिकल्स नुकसान पहुंचाते हैं। यह केमिकल से सांस की नालियों और फेफड़ों में जमा होने लगते हैं। सांस की नलिओं के भीतर सतह गीली होती है और जब हानिकारक कण प्रदूषण की वजह से शरीर में प्रवेश करते हैं तब ये कण सांस की नली के ल्युब्रिकेंट पर सूख कर जमा हो जाता है।
ऐसे में सांस लेने में परेशानी होती है और स्थिति गंभीर होने पर मस्तिष्क तक ऑक्सीजन पहुंचने में रूकावट होने लगती है। ऐसी अवस्था को क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज के नाम से भी जाना जाता है।
कभी-कभी तो स्थिति गम्भीर होने पर हॉस्पिटल में एडमिट होने की भी नौबत आ जाती है और पल्स, ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि लगाने पड जाते हैं। इन उपकरणों की मदद से मरीज के लिए सांस लेने की प्रक्रिया थोड़ी आसान हो जाती है।
इस तरह करें फेफड़े का बचाव –
फेफड़े को स्वास्थ्य रखने के लिये सुरक्षा उपाय के अलावा फेफड़े को मजबूत करने वाले एक्सरसाइज करने पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही निमोनिया, टीवी जैसे गंभीर बीमारियों से बचने के लिए धूम्रपान से दूर रहना चाहिए क्योंकि फेफड़े को सबसे ज्यादा नुकसान धूम्रपान से होता है। इसके अलावा प्रदूषण भी नुकसान पहुंचाता है।
इसलिए घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनना चाहिए। फेफड़े को बेहतर ढंग से काम करने और स्वस्थ बनाए रखने के लिए योग की एक प्रक्रिया अनुलोम- विलोम की प्रक्रिया की जा सकती है।
इसके लिए रोजाना सुबह-शाम 10 से 15 मिनट अनुलोम-विलोम करना चाहिए। इससे फेफड़े को स्वस्थ और मजबूत रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा अगर सांस लेने में परेशानी हो तो तुरन्त डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
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